सिर्फ 6 रुपए के चक्कर में गंवानी पड़ी सरकारी नौकरी, जानिए क्या है पूरा मामला?

First Ever News Admin
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Indian Railways News: क्या आपने कभी सुना है कि मात्र 6 रुपए के लिए किसी की नौकरी चली जाए, नहीं ना मायानगरी मुंबई से हैरान करने वाला मामला सामने आया है। आपको बता दें कि यहां महज 6 रुपये नहीं लौटाने के चक्कर में रेलवे के एक बुकिंग क्लर्क को नौकरी से हाथ धोना पड़ गया। इतना ही नहीं, मामला जब बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने भी उसे राहत देने से इनकार कर दिया।rn

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मामला 26 साल पुराना हैrn

दरअसल मामला 26 साल पुराना है, यहां विजलेंस टीम की छापेमारी में पकड़े जाने के बाद क्लर्क को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। आपको बता दें कि मुंबई में 31 जुलाई 1995 को राजेश वर्मा रेलवे में क्लर्क बने थे। जिसके बाद 30 अगस्त 1997 को वर्मा कुर्ला टर्मिनस जंक्शन मुंबई में कंप्यूटरीकृत करंट बुकिंग कार्यालय में यात्रियों के टिकट बुक कर रहे थे। इसी दौरान विजिलेंस टीम ने एक रेलवे पुलिस बल यानी (RPF) कांस्टेबल को नकली यात्री बनाकर क्लर्क राजेश वर्मा के काउंटर पर भेजा, खिड़की पर जाकर उसने कुर्ला टर्मिनस से आरा (बिहार) तक के टिकट के लिए मांगा। टिकट किराया 214 रुपए था और यात्री ने 500 रुपए का नोट क्लर्क वर्मा को दिया, जिसके बाद वर्मा केवल 280 रुपए वापस किए, यानी उसमें 6 रुपए कम थे।rn

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विजिलेंस टीम ने काउंटर पर छापेमारी कीrn

तो वहीं इसके बाद विजिलेंस टीम ने बुकिंग क्लर्क राजेश वर्मा के टिकटिंग काउंटर पर छापेमारी की। लेकिन टिकट बिक्री के हिसाब से उनके रेलवे कैश में 58 रुपये कम मिले। तो वहीं क्लर्क की सीट के पीछे रखी अलमारी से 450 रुपये की बरामद हुए। बता दें कि विजिलेंस टीम के अनुसार यह राशि वर्मा को यात्रियों से अधिक किराया वसूली से मिली थी। जिसके बाद वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच की गई और रिपोर्ट आने पर 31 जनवरी 2002 को उन्हें दोषी ठहराकर नौकरी से निकाल दिया गया।rn

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वर्मा ने अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष चुनौती दीrn

तो वहीं आरोपी वर्मा ने इस आदेश को अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष चुनौती दी, लेकिन 9 जुलाई 2002 को इसे खारिज कर दिया। इसके बाद फिर वर्मा 23 अगस्त 2002 को पुनरीक्षण प्राधिकरण के समक्ष गए, जिसके बाद 17 फरवरी 2003 को उनकी दया याचिका को भी खारिज कर दिया गया। वर्मा की ओर से अदालत में कहा गया- कि छुट्टे पैसे न होने के कारण यात्री को 6 रुपये तुरंत वापस नहीं किए जा सके और यात्री को राशि की वापसी के लिए इंतजार करने को कहा गया था। साथ ही कहा गया कि जिस अलमारी में कथित तौर पर 450 रुपये की राशि पाई गई थी, वह क्लर्क वर्मा के नियंत्रण में नहीं थी। वह अलमारी बुकिंग कार्यालय में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के उपयोग के लिए थी और असल में मुख्य बुकिंग पर्यवेक्षक के लिए आवंटित थी।rn

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कोर्ट ने भी उसे राहत देने से इनकार कर दिया rn

तो वहीं मामले में जस्टिस नितिन जामदार और एसवी मार्ने की बेंच ने कहा- उस दौरान न तो फर्जी यात्री और न ही किसी गवाह ने क्लर्क वर्मा को बाकी के 6 रुपये लौटाने की बात कहते सुना था। साथ ही कहा कि इसका रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है, मतलब वर्मा का 6 रुपये की राशि लौटाने का कोई इरादा ही नहीं था।

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साथ ही हाईकोर्ट की बेंच ने कहा- अलमारी का स्थान वर्मा की खिड़की के ठीक पीछे था और उनकी वहां तक पहुंच थी। साथ ही अनुशासनात्मक जांच में फर्जी यात्री से अधिक किराया वसूलना भी साबित हुआ है। इस मामले में वर्मा को अपना पक्ष रखने का अवसर मिल चुका है। तो वहीं रेलवे की ओर से वकील ने हाईकोर्ट से केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण यानी (सीएटी) कैट के आदेश को कायम रखने का आग्रह किया।rn

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